Us Paar bhi tu - 1 in Hindi Love Stories by Nirbhay Shukla books and stories PDF | उस पार भी तू - 1

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उस पार भी तू - 1

प्रस्तावना

कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं... और कुछ अधूरी होकर भी अमर हो जाती हैं।
यह कहानी भी उन्हीं में से एक है।

‘प्रकाश और राधिका’— दो नाम नहीं, दो आत्माएँ थीं जो एक-दूसरे की सांसों में समाई हुई थीं।
उनका प्रेम कोई समझौता नहीं था, कोई समझदारी नहीं थी,
वो तो बस आत्मा की आवाज़ थी—
जो ना रिश्तों की परिभाषा मांगती थी, ना समाज की अनुमति।

इस कहानी में ना ही हीरो कोई योद्धा है, और ना ही हीरोइन कोई परी।
ये कहानी बहुत साधारण लोगों की है—
लेकिन उनकी भावनाएँ इतनी असाधारण थीं, कि उन्होंने प्रेम को पुनर्परिभाषित कर दिया।

यह उपन्यास सिर्फ एक प्रेम कथा नहीं है,
यह एक प्रण है—
कि सच्चा प्रेम भले समय से हारा हो, लेकिन काल से नहीं।
यह कहानी हर उस दिल की है,
जिसने कभी अपने प्रेम को सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि ज़माना उसके साथ नहीं था।

शब्दों के इन पन्नों में आप प्रेम की वो गहराई पाएंगे,
जो आपको रुलाएगी भी, हँसाएगी भी... और शायद आपसे कहेगी—

> "सच्चा प्रेम कभी मरता नहीं, वो बस अगला जन्म लेता है।"

इस कहानी को लिखते समय मैं केवल लेखक नहीं रहा...
कभी प्रकाश बन गया, कभी राधिका की आंखों से देखा।
हर भावना, हर आँसू, हर स्पर्श को मैं महसूस करता रहा।

आपसे बस यही अनुरोध है—
जब आप इस पुस्तक को पढ़ें,
तो दिल की आवाज़ से पढ़ें, क्योंकि ये कहानी किसी दिमाग से नहीं निकली…
बल्कि एक दिल की गहराई से निकली है।


 (लेखक विचार / लेखक की कलम से):

> “कहानी को शब्दों में ढालते वक्त मेरी कलम कई बार थम गई...
क्योंकि ये सिर्फ प्रेम नहीं, आत्मा का स्पर्श है।
यह कहानी उन लोगों के लिए है जिन्होंने प्रेम में स्वयं को खो दिया और पा भी लिया।”

“इश्क़ वो समंदर है जो लहरों से नहीं,
डूब जाने से महसूस होता है।


 तो आइए अब शुरू करते हैं...



       
                                बनारस की सुबह: एक सुनहरी दास्ताँ

गंगा की आरती की वो हल्की सी गूंज जब घाटों से उठती है, तो बनारस का हर कोना मानो एक जीवंत कविता बन जाता है। सुबह के पहले किरणें जब मढ़ जाती हैं गंगा के नीले पानी को सुनहरे चांदी की चादर में, तब इस नगरी की गलियाँ भी सोते हुए सपनों से जाग उठती हैं।

बनारस, जिसकी हवा में इतिहास की गंध घुली हो, जिसकी मिट्टी में संस्कृति की खुशबू समाई हो, वो शहर जो हर किसी के दिल में अपने पौराणिक गलियारों के लिए एक खास जगह रखता है। यहाँ की गलियाँ भी जैसे अपनी कहानी खुद कहती हैं—कुछ बातों में नर्म, कुछ में कठोर, मगर हर मोड़ पर आपको जीवन के रंगों का दर्शन कराती हुई।

सुबह की पहली ठंडी हवा में गंगा के घाटों पर खड़े मल्लाह अपनी नावों को सजाते हैं। कहीं दूर पंडित चप्पलों की आहट के साथ अपने मंत्रों की गूँज उड़ाते हैं, तो कहीं कौए अपने झुंड में शोर मचाते हुए आसमान की ऊंचाइयों को चूम रहे होते हैं। घाटों की सीढ़ियाँ, जिनपर रोज़ाना हजारों पैर चलते हैं, जैसे यहाँ के वक्त के साक्षी हों।

गली-गली, नुक्कड़-नुक्कड़ पर बजती हुई बांसुरी की मधुर धुन सुनने को मिलती है। उन पुराने पत्थरों पर, जिन पर बार-बार वर्षों से कदम पड़ते आए हैं, आज भी प्रेम के गीत गूंजते हैं। बनारस की हवाओं में अक्सर काफ़ी महफ़िलें बसती हैं — कहीं कोई बैरागी भजन गा रहा है, तो कहीं बच्चे चहल-पहल करते हुए अपने खेल में खोए हैं।

यहाँ के लोग सरल मगर दिल से बड़े होते हैं। उनके चेहरों पर भले ही कठिनाइयों की परछाइयाँ हों, मगर आँखों में एक चमक होती है जो उम्मीद की किरण से कम नहीं। हर मुस्कुराहट में सदियों का विश्वास छुपा होता है। यहाँ की गलियों में चलना ऐसा है मानो किसी पुराने किस्से के पन्नों में खो जाना।

खासतौर पर सुबह-सुबह की वो मद्धम रोशनी जब बनारस के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर की घंटियाँ बजने लगती हैं, और पूरा शहर उस पूजा की पावन ध्वनि से गुंजायमान हो उठता है — यही पल है जब बनारस अपने सौंदर्य और पवित्रता की असली तस्वीर दुनिया के सामने लाता है।